

हमारी बेटियां हमारा अभिमान
December 9, 2015, 03:14 PM
मो0 अनीर्सुरहमान खान
फोन नं0 ़07042293793
इसमें कोई षक नही की संतान इस धरती पर भगवान का वरदान है और हर वरदान के द्वारा भगवान मनुश्यों से परीक्षा भी लेता है यही कारण है कि भगवान किसी को बेटा किसी को बेटी देता है तो कभी निःसंतान रखकर उसकी परीक्षा लेता है। जबकि संतान वालो की परीक्षा भगवान कई चरणों मे लेता है। षब्द संतान को अगर समझने का प्रयास करें तो इसका संबंध बेटा और बेटी दोनों से ही होता है मगर वर्तमान मे हमारा समाज फिर से प्राचीन रुढ़ीवादी सोच की तरफ आगे बढ़ता नजर आ रहा है क्योंकि दुनिया को बनाने वाला अपने संदेष के अनुसार मनुश्यों को इस धरती पर जोड़ो में पैदा करता है मगर फिर भी आज समाज में लड़को को अधिक महत्वपूर्णता दी जाती है और लड़कियों को बोझ समझा जाता है। षायद इसलिए हम मे से जो अधिक षिक्षित है धनवान हैं वो बेटियों के जन्म से पूर्व ही विज्ञान का गलत उपयोग कर भ्रुण की जांच करवाते हैं और कन्या भ्रुण हत्या करने मे जरा भी संकोच नही करते जबकि पिछड़े और कम षिक्षित वर्ग के लोग बेटियों के जन्म के बाद किसी भी तरीके से उन्हें मार कर अपने ह्रदय को संतुश्ट करते है। षायद ऐसा करने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि ऐसा करके वो आने वाली नस्लो के लिए कितनी बड़ी परेषानी की नींव रख रहे है। हमारे देष में बेटियों को मारने के विभिन्न तरीके लोगो ने अपनाएं है कभी अपनी नकारात्मकता छुपाने के लिए कभी बेरोजगारी का बहाना बनाकर तो कभी अपनी संपति अपने बाद भी अपने खानदानो मे बाकी रखने के लिए जबकि दहेज लोभ में दुलहन को मारना जलाना तो बहुत आम सी बात हो गई है जिसका उदाहरण प्रस्तुत करने की भी कोई आवष्यकता नही। आंकड़ो को देख कर ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।राश्ट्रीय स्तर पर जहां वर्श 2001 के आंकड़ो के अनुसार 0-6 साल तक के 1000 लड़को पर 927 लड़कियाॅं थी वही वर्श 2011 मे यह संख्या घटकर मात्र 914 रह गई जबकि बात अगर राज्यों की करें तो जम्मू कषमीर राज्य में ये आंकड़े और भी चिन्ताजनक नजर आते है यहां वर्श 2001 में 1000 लड़को पर 941 लड़कियाॅ थी जिनकी संख्या घटकर वर्श 2011 मे मात्र 859 बच गई। इसी प्रकार उतराखंड में वर्श 2001 मे लड़कियों की संख्या 1000 लड़को पर 908 थी जो घटकर वर्श 2011 मे 886हो गई। देष के विकसित कहे जाने वाले राज्यों जैसे - पंजाब, हरियाणा, और गुजरात में तो पहले से ही बुरा हाल था जबकि बिहार, झारखंड , उड़ीसा, बंगाल और असम जैसे पिछड़े राज्यों के आंकड़े भी इस मामले मे कुछ अच्छे नजर नही आते। बात बिहार की की जाए तो वर्श 2001 मे लड़कियों की संख्या 1000 लड़के पर 942 थी जो वर्श 2011 मे घटकर 933 रह गई। इसी तरह पष्चिम बंगाल मे वर्श 2001 मे 960 थी जो वर्श 2011 मे 950 हो गई। झारखंड में वर्श 2001 मे 965 से घटकर वर्श 2011 मे 943 और उड़ीसा मे 953 से घटकर 934 हो गई। इस संबंध मे नक्सली प्रभावित क्षेत्र छतीसगढ़ के आंकड़ो का भी यही हाल है जहां वर्श 2001 मे 1000 लड़को पर लड़कियों की संख्या 932 थी वो वर्श 2011 मे 912 हो गई। ध्यान रहे कि इनमे से कुछ राज्य जैसे- हरियाणा, पंजाब, उतरप्रदेष, जम्मू-कषमीर, गुजरात इत्यादि मे बिहार , झारखंड, उड़ीसा, पष्चिम बंगाल, का मषहुर मैगजीन द वीक मे 28 सितंबर 2014 को पृष्ठ संख्या 20, 42, कोर स्टोरी मे प्रकाषित एक रिपोर्ट के अनुसार म्उचवूमत च्मवचसम नामक एक गैर सरकारी संस्थान जो दुलहन स्मगलिंग के विरूद्ध हरियाणा मे लड़ रही है उसने साल 2012-2013 मे एक षोध किया जिसके अनुसार दुलहन स्मगलिंग में 79 प्रतिषत औरतें मुस्लिम समाज 17 प्रतिषत आदिवासी और 4 प्रतिषत दलित समाज से संबंध रखने वाली पाई गई।इनमे से 56 प्रतिषत महिलाओं को 2 बार जबकि 21 प्रतिषत को तीन बार और 6 प्रतिषत को तीन बार से भी ज्यादा खरीदा और बेचा जा चुका है। महत्वपूर्ण यह है कि इनमे से 76 प्रतिषत महिलाओं को उनके घरेलु मामलो मे बोलने का कोई अधिकार नही 71 प्रतिषत महिलाओं का किसी पर्व त्योहार मे भाग लेने का अधिकार नही और तो और 8 प्रतिषत महिलाओं के नाम चुनावी सूची मे नही है इस संबंध में जब म्उचवूमत च्मवचसम के डायरेक्टर जनाब षफीक उर्ररहमान से बात हुई तो उन्होने बताया-कई दुलहनों को कई बार सिर्फ इसलिए बेचा जाता है ताकि उनसे प्रसव और अन्य घरेलु काम करवाए जा सके। बावजुद इसके आज तक ऐसी महिलाओं को समाज मे कोई स्थान प्राप्त नही हो पाया। खरीददार उनसे विवाह जरूर करते हैं परंतु इन महिलाओं को किसी भी रुप मे पत्नी स्वीकार नही करते । इस संबंध मे 40 साल की जाहिदा बताती है -मैं असम की रहने वाली हूं मेरे सगे भाई ने मात्र 2 हजार रुपये के लिए मेरा विवाह हरियाणा मे मेवात के गांव बसरु के रहने वाले खुर्षीद से कर दी थी। उसके मरने के बाद मेरे खाने कपड़े और अन्य आवष्यकताओं की पूर्ति गांव वालो ने की लेकिन बदले मे मेरी तरह दुसरी लड़कियों को लाने के लिए कहा गया तो मै अपने गांव से सात लड़कियों को यहां लेकर आई ।अहमदाबाद गुजरात में स्थित सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों की सहायता करके महिलाओं के स्वास्थ्य, षिक्षा परवरिष जागरुकता अधिकार और उनके विकास के लिए विभिन्न तरीको से काम करने वाली गैर सरकारी संस्था चेतना की मई 2013 मे बनने वाली नई डायरेक्टर श्रीमति पल्लवी पटेल के अनुसार गुजरात के षहर मेहसाना मे वर्श 2001 मे 1000 लड़को पर 0-6 साल की आयु तक की लड़कियों की संख्या 801 थी। इस आंकड़े को षहरी और ग्रामीण क्षेत्रों मे विभाजित किया जाए तो षहरी आबादी के अनुसार हजार लड़को पर 751 लड़कियां थी जबकि ग्रामीण स्तर पर यह संख्या 813 थी। अर्थात षहरी क्षेत्र से कही बेहतर वो आगे बताती है हम लोगो ने इस ओर तुरंत ही ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रत्येक स्तर पर काम किया परिणाम स्वरुप वर्श 2011 के आंकड़े कुछ अच्छे नजर आए और मेहसाना की कुल आबादी 801 से बढ़कर 845 हो गई जबकि षहरी क्षेत्रों मे 751 से बढ़कर 794 हो चुकी है। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों मे 813 से बढ़कर 860 लड़कियां अब 1000 लड़को पर हो गई है। परंतु अब भी यह संख्या बहुत कम है इसलिए हम अब भी इस पर काम कर रहे है। गैर सरकारी संस्थान चेतना की डायरेक्टर फाउन्डर श्रीमति इन्दु कपूर के अनुसार हम लोगों ने इस गंभीर समस्या को हर स्तर पर उठाया है। यहां तक की गुजरात मे पतंगबाजी बहुत मषहुर है इसलिए हमलोगों ने पतंगो पर प्रिंट की सहायता से गुजराती भाशा मे संदेष लिखकर आम लोगो को यह बताने का प्रयास किया है कि हमारी बेटियां हमारा अभिमान है। वर्श 2002 मे हमने गुजरात के विधानसभा सदस्यों को इक्टठा करके उनके सामने इस गंभीर समस्या को रखा और उनसे सहायता मांगी ताकि इस समस्या से गुजरात को मुक्त कराया जा सके। वो आगे बताती है हमलोग स्कूल,, काॅलेजो, मेलो, प्रदर्षनी गांवों मे जा-जा कर और मीडिया का सहारा लेकर लोगो को इस समस्या के प्रति जागरुक करने और लड़कियो को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे है। जो काफी हद तक सफल भी हो रहा है। 9 सितंबर 2015 को दिल्ली मे हमारी संस्था ने एक मीडिया संवाद की थी जिसमे राज्यसभा के पूर्व सांसद और गुजरात बैकवर्ड क्लास डेवलपमेन्ट के चेयरमैन मिस्टर जयन्ती लाल बरवत ने भी आगमन किया था। इस अवसर पर उन्होने कहा कि चेतना गुजरात मे लड़कियों की सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रही है। इसलिए मै भी इसके साथ हूं। और इनके साथ काम करने मे मजा आता है मै अपने क्षेत्र में जहां कही भी सरकारी या गैर सरकारी प्रोग्रामो मे जाता हूं । दस पंद्रह मिनट इस गंभीर विशय पर जरुर बोलता हूं। मुझे यकीन है वर्श 2020 तक लड़के और लड़कियों की संख्या कम से कम गुजरात मे बराबर हो जाएगी। केन्द्र सरकार की योजना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की चर्चा करते हुए कहते हैं कि नरेन्द्र भाई मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद केन्द्र मे इस योजना की षुरुआत की है मगर हमने वर्श 2006 मे ही जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थें तब ही गुजरात मे इस योजना को षुरु कर दिया था मुझे लगता है लड़कियों को मारने मे खुद महिलाओ का भी हाथ होता है इसलिए मैं मानता हूं कि महिलाओ के प्रोग्राम मे पुरुशो को भी हिस्सा लेना चाहिए। ताकि अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सके। वो एक खास बिन्दु की तरफ ईषारा करते हुए कहते हैं जैसे-जैसे षिक्षा और धन बढ़ रहा है वैसे-वैसे कन्या हत्या की बिमारी भी बढ़ती जा रही है। आज भी ग्रामीण और आदिवासी इलाकों मे षहरी और विकसित कहे जाने वालो के मुकाबले लड़कियों की संख्या अधिक है ये मै अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। दरअसल गुजरात के जिला मेहसाना और अन्य जिलो मे चेतना ने लड़कियों की संख्या मे व्रद्धि करने के लिए विषेश प्रकार की योजना बनाई थी उदाहरण स्वरुप वर्श 2001 की जनगणना रिपोर्ट आम लोगो के बीच आने के बाद इस संख्या ने राश्ट्रीय महिला कमिषन के साथ मिलकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया था। जिसका विशय लड़को के मुकाबले लड़कियों की संख्या का कम होना था। इस वर्कशॉप मे सबंधित सारे क्षेत्रों जैसे- स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास सोषल जस्टिस एण्ड ईम्पावरमेन्ट जुड़ीष्यरी इत्यादि को षामिल करके विभ्न्नि विशयों पर परिचर्चा कराया गया जैसे सामाजिक, पारंपरिक तकनीकी बिन्दुओं के अतिरिक्त कानून का लागू होना। पाॅलिसी की महत्वपूर्णता अदालत की भूमिका इत्यादि। परिणामस्वरुप सभी दिग्गजों ने इस गंभीर समस्या पर ना सिर्फ अपनी-अपनी राय दी बल्कि हर प्रकार से सहयोग भी किया और उन सबको अच्छे रुप मे चेतना संस्था ने प्रत्येक स्तर पर पहूंचा कर गुजरात के कई जिले जैसे मेहसाना, और वेष नगर मे ना सिर्फ लड़कियों की संख्या को बढ़ाया है साथ ही अन्य नगरवासियों तक ये संदेष भी पहुंचाया है कि इरादे नेक हो तो कामयाबी कदम चुमते है। चेतना का ये नारा हमारी बेटियां हमारा अभिमान है हम सब देषवासियों का नारा होना चाहिए नही तो आने वाला समय हम सबके लिए बर्बादी का संदेष लेकर आएगा क्योंकि ये महिलाएं ही है जिनके कारण यह संसार इतना सुन्दर है मां ही है जो अपने आंचल के साए मे छुपा कर हमे सारी समस्याओं से मुक्त कर देती है। ध्यान से सोचें अगर आज बेटी ही नही होगी तो कल मां कहां से आएगी। (चरखा फीचर्स)
फोन नं0 ़07042293793
इसमें कोई षक नही की संतान इस धरती पर भगवान का वरदान है और हर वरदान के द्वारा भगवान मनुश्यों से परीक्षा भी लेता है यही कारण है कि भगवान किसी को बेटा किसी को बेटी देता है तो कभी निःसंतान रखकर उसकी परीक्षा लेता है। जबकि संतान वालो की परीक्षा भगवान कई चरणों मे लेता है। षब्द संतान को अगर समझने का प्रयास करें तो इसका संबंध बेटा और बेटी दोनों से ही होता है मगर वर्तमान मे हमारा समाज फिर से प्राचीन रुढ़ीवादी सोच की तरफ आगे बढ़ता नजर आ रहा है क्योंकि दुनिया को बनाने वाला अपने संदेष के अनुसार मनुश्यों को इस धरती पर जोड़ो में पैदा करता है मगर फिर भी आज समाज में लड़को को अधिक महत्वपूर्णता दी जाती है और लड़कियों को बोझ समझा जाता है। षायद इसलिए हम मे से जो अधिक षिक्षित है धनवान हैं वो बेटियों के जन्म से पूर्व ही विज्ञान का गलत उपयोग कर भ्रुण की जांच करवाते हैं और कन्या भ्रुण हत्या करने मे जरा भी संकोच नही करते जबकि पिछड़े और कम षिक्षित वर्ग के लोग बेटियों के जन्म के बाद किसी भी तरीके से उन्हें मार कर अपने ह्रदय को संतुश्ट करते है। षायद ऐसा करने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि ऐसा करके वो आने वाली नस्लो के लिए कितनी बड़ी परेषानी की नींव रख रहे है। हमारे देष में बेटियों को मारने के विभिन्न तरीके लोगो ने अपनाएं है कभी अपनी नकारात्मकता छुपाने के लिए कभी बेरोजगारी का बहाना बनाकर तो कभी अपनी संपति अपने बाद भी अपने खानदानो मे बाकी रखने के लिए जबकि दहेज लोभ में दुलहन को मारना जलाना तो बहुत आम सी बात हो गई है जिसका उदाहरण प्रस्तुत करने की भी कोई आवष्यकता नही। आंकड़ो को देख कर ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।राश्ट्रीय स्तर पर जहां वर्श 2001 के आंकड़ो के अनुसार 0-6 साल तक के 1000 लड़को पर 927 लड़कियाॅं थी वही वर्श 2011 मे यह संख्या घटकर मात्र 914 रह गई जबकि बात अगर राज्यों की करें तो जम्मू कषमीर राज्य में ये आंकड़े और भी चिन्ताजनक नजर आते है यहां वर्श 2001 में 1000 लड़को पर 941 लड़कियाॅ थी जिनकी संख्या घटकर वर्श 2011 मे मात्र 859 बच गई। इसी प्रकार उतराखंड में वर्श 2001 मे लड़कियों की संख्या 1000 लड़को पर 908 थी जो घटकर वर्श 2011 मे 886हो गई। देष के विकसित कहे जाने वाले राज्यों जैसे - पंजाब, हरियाणा, और गुजरात में तो पहले से ही बुरा हाल था जबकि बिहार, झारखंड , उड़ीसा, बंगाल और असम जैसे पिछड़े राज्यों के आंकड़े भी इस मामले मे कुछ अच्छे नजर नही आते। बात बिहार की की जाए तो वर्श 2001 मे लड़कियों की संख्या 1000 लड़के पर 942 थी जो वर्श 2011 मे घटकर 933 रह गई। इसी तरह पष्चिम बंगाल मे वर्श 2001 मे 960 थी जो वर्श 2011 मे 950 हो गई। झारखंड में वर्श 2001 मे 965 से घटकर वर्श 2011 मे 943 और उड़ीसा मे 953 से घटकर 934 हो गई। इस संबंध मे नक्सली प्रभावित क्षेत्र छतीसगढ़ के आंकड़ो का भी यही हाल है जहां वर्श 2001 मे 1000 लड़को पर लड़कियों की संख्या 932 थी वो वर्श 2011 मे 912 हो गई। ध्यान रहे कि इनमे से कुछ राज्य जैसे- हरियाणा, पंजाब, उतरप्रदेष, जम्मू-कषमीर, गुजरात इत्यादि मे बिहार , झारखंड, उड़ीसा, पष्चिम बंगाल, का मषहुर मैगजीन द वीक मे 28 सितंबर 2014 को पृष्ठ संख्या 20, 42, कोर स्टोरी मे प्रकाषित एक रिपोर्ट के अनुसार म्उचवूमत च्मवचसम नामक एक गैर सरकारी संस्थान जो दुलहन स्मगलिंग के विरूद्ध हरियाणा मे लड़ रही है उसने साल 2012-2013 मे एक षोध किया जिसके अनुसार दुलहन स्मगलिंग में 79 प्रतिषत औरतें मुस्लिम समाज 17 प्रतिषत आदिवासी और 4 प्रतिषत दलित समाज से संबंध रखने वाली पाई गई।इनमे से 56 प्रतिषत महिलाओं को 2 बार जबकि 21 प्रतिषत को तीन बार और 6 प्रतिषत को तीन बार से भी ज्यादा खरीदा और बेचा जा चुका है। महत्वपूर्ण यह है कि इनमे से 76 प्रतिषत महिलाओं को उनके घरेलु मामलो मे बोलने का कोई अधिकार नही 71 प्रतिषत महिलाओं का किसी पर्व त्योहार मे भाग लेने का अधिकार नही और तो और 8 प्रतिषत महिलाओं के नाम चुनावी सूची मे नही है इस संबंध में जब म्उचवूमत च्मवचसम के डायरेक्टर जनाब षफीक उर्ररहमान से बात हुई तो उन्होने बताया-कई दुलहनों को कई बार सिर्फ इसलिए बेचा जाता है ताकि उनसे प्रसव और अन्य घरेलु काम करवाए जा सके। बावजुद इसके आज तक ऐसी महिलाओं को समाज मे कोई स्थान प्राप्त नही हो पाया। खरीददार उनसे विवाह जरूर करते हैं परंतु इन महिलाओं को किसी भी रुप मे पत्नी स्वीकार नही करते । इस संबंध मे 40 साल की जाहिदा बताती है -मैं असम की रहने वाली हूं मेरे सगे भाई ने मात्र 2 हजार रुपये के लिए मेरा विवाह हरियाणा मे मेवात के गांव बसरु के रहने वाले खुर्षीद से कर दी थी। उसके मरने के बाद मेरे खाने कपड़े और अन्य आवष्यकताओं की पूर्ति गांव वालो ने की लेकिन बदले मे मेरी तरह दुसरी लड़कियों को लाने के लिए कहा गया तो मै अपने गांव से सात लड़कियों को यहां लेकर आई ।अहमदाबाद गुजरात में स्थित सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों की सहायता करके महिलाओं के स्वास्थ्य, षिक्षा परवरिष जागरुकता अधिकार और उनके विकास के लिए विभिन्न तरीको से काम करने वाली गैर सरकारी संस्था चेतना की मई 2013 मे बनने वाली नई डायरेक्टर श्रीमति पल्लवी पटेल के अनुसार गुजरात के षहर मेहसाना मे वर्श 2001 मे 1000 लड़को पर 0-6 साल की आयु तक की लड़कियों की संख्या 801 थी। इस आंकड़े को षहरी और ग्रामीण क्षेत्रों मे विभाजित किया जाए तो षहरी आबादी के अनुसार हजार लड़को पर 751 लड़कियां थी जबकि ग्रामीण स्तर पर यह संख्या 813 थी। अर्थात षहरी क्षेत्र से कही बेहतर वो आगे बताती है हम लोगो ने इस ओर तुरंत ही ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रत्येक स्तर पर काम किया परिणाम स्वरुप वर्श 2011 के आंकड़े कुछ अच्छे नजर आए और मेहसाना की कुल आबादी 801 से बढ़कर 845 हो गई जबकि षहरी क्षेत्रों मे 751 से बढ़कर 794 हो चुकी है। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों मे 813 से बढ़कर 860 लड़कियां अब 1000 लड़को पर हो गई है। परंतु अब भी यह संख्या बहुत कम है इसलिए हम अब भी इस पर काम कर रहे है। गैर सरकारी संस्थान चेतना की डायरेक्टर फाउन्डर श्रीमति इन्दु कपूर के अनुसार हम लोगों ने इस गंभीर समस्या को हर स्तर पर उठाया है। यहां तक की गुजरात मे पतंगबाजी बहुत मषहुर है इसलिए हमलोगों ने पतंगो पर प्रिंट की सहायता से गुजराती भाशा मे संदेष लिखकर आम लोगो को यह बताने का प्रयास किया है कि हमारी बेटियां हमारा अभिमान है। वर्श 2002 मे हमने गुजरात के विधानसभा सदस्यों को इक्टठा करके उनके सामने इस गंभीर समस्या को रखा और उनसे सहायता मांगी ताकि इस समस्या से गुजरात को मुक्त कराया जा सके। वो आगे बताती है हमलोग स्कूल,, काॅलेजो, मेलो, प्रदर्षनी गांवों मे जा-जा कर और मीडिया का सहारा लेकर लोगो को इस समस्या के प्रति जागरुक करने और लड़कियो को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे है। जो काफी हद तक सफल भी हो रहा है। 9 सितंबर 2015 को दिल्ली मे हमारी संस्था ने एक मीडिया संवाद की थी जिसमे राज्यसभा के पूर्व सांसद और गुजरात बैकवर्ड क्लास डेवलपमेन्ट के चेयरमैन मिस्टर जयन्ती लाल बरवत ने भी आगमन किया था। इस अवसर पर उन्होने कहा कि चेतना गुजरात मे लड़कियों की सुरक्षा के लिए अच्छा काम कर रही है। इसलिए मै भी इसके साथ हूं। और इनके साथ काम करने मे मजा आता है मै अपने क्षेत्र में जहां कही भी सरकारी या गैर सरकारी प्रोग्रामो मे जाता हूं । दस पंद्रह मिनट इस गंभीर विशय पर जरुर बोलता हूं। मुझे यकीन है वर्श 2020 तक लड़के और लड़कियों की संख्या कम से कम गुजरात मे बराबर हो जाएगी। केन्द्र सरकार की योजना बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की चर्चा करते हुए कहते हैं कि नरेन्द्र भाई मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद केन्द्र मे इस योजना की षुरुआत की है मगर हमने वर्श 2006 मे ही जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थें तब ही गुजरात मे इस योजना को षुरु कर दिया था मुझे लगता है लड़कियों को मारने मे खुद महिलाओ का भी हाथ होता है इसलिए मैं मानता हूं कि महिलाओ के प्रोग्राम मे पुरुशो को भी हिस्सा लेना चाहिए। ताकि अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सके। वो एक खास बिन्दु की तरफ ईषारा करते हुए कहते हैं जैसे-जैसे षिक्षा और धन बढ़ रहा है वैसे-वैसे कन्या हत्या की बिमारी भी बढ़ती जा रही है। आज भी ग्रामीण और आदिवासी इलाकों मे षहरी और विकसित कहे जाने वालो के मुकाबले लड़कियों की संख्या अधिक है ये मै अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। दरअसल गुजरात के जिला मेहसाना और अन्य जिलो मे चेतना ने लड़कियों की संख्या मे व्रद्धि करने के लिए विषेश प्रकार की योजना बनाई थी उदाहरण स्वरुप वर्श 2001 की जनगणना रिपोर्ट आम लोगो के बीच आने के बाद इस संख्या ने राश्ट्रीय महिला कमिषन के साथ मिलकर एक वर्कशॉप का आयोजन किया था। जिसका विशय लड़को के मुकाबले लड़कियों की संख्या का कम होना था। इस वर्कशॉप मे सबंधित सारे क्षेत्रों जैसे- स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास सोषल जस्टिस एण्ड ईम्पावरमेन्ट जुड़ीष्यरी इत्यादि को षामिल करके विभ्न्नि विशयों पर परिचर्चा कराया गया जैसे सामाजिक, पारंपरिक तकनीकी बिन्दुओं के अतिरिक्त कानून का लागू होना। पाॅलिसी की महत्वपूर्णता अदालत की भूमिका इत्यादि। परिणामस्वरुप सभी दिग्गजों ने इस गंभीर समस्या पर ना सिर्फ अपनी-अपनी राय दी बल्कि हर प्रकार से सहयोग भी किया और उन सबको अच्छे रुप मे चेतना संस्था ने प्रत्येक स्तर पर पहूंचा कर गुजरात के कई जिले जैसे मेहसाना, और वेष नगर मे ना सिर्फ लड़कियों की संख्या को बढ़ाया है साथ ही अन्य नगरवासियों तक ये संदेष भी पहुंचाया है कि इरादे नेक हो तो कामयाबी कदम चुमते है। चेतना का ये नारा हमारी बेटियां हमारा अभिमान है हम सब देषवासियों का नारा होना चाहिए नही तो आने वाला समय हम सबके लिए बर्बादी का संदेष लेकर आएगा क्योंकि ये महिलाएं ही है जिनके कारण यह संसार इतना सुन्दर है मां ही है जो अपने आंचल के साए मे छुपा कर हमे सारी समस्याओं से मुक्त कर देती है। ध्यान से सोचें अगर आज बेटी ही नही होगी तो कल मां कहां से आएगी। (चरखा फीचर्स)
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