Tuesday, November 1, 2011

अंधेरे में रोशनी की झलक

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पिछले साल बिहार में आयी भयावह बाढ़ से प्रभावित लोगों की हालत देखकर चरखा के अध्यक्ष शंकर घोष ने फैसला किया कि अपनी एक टीम बिहार भेजी जाय ताकि उनकी समस्या का मुनासिब समाधान तलाश किया जाय। चरखा टीम में शामिल उर्दू फीचर सेवा के संपादक मोहम्मद अनीस उर रहमान खान और अंग्रेजी की संपादक सुजाता राघवन ने बिहार के दो जिले सीतामढ़ी और दरभंगा का दौरा किया और अन्तत: फैसले के तौर पर वहां पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें प्रतियोगियों को पत्रकारिता प्रशिक्षण की व्यवस्था करायी गयी।

सीतामढ़ी के राम नगरा गांव में भूतपूर्व मुखिया और गांव के लोगों से मिलने के बाद चरखा टीम से वहां के लोगों ने बताया कि पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल बिहार में बाढ़ की समस्‍या पर सरकार ने हमारी अच्छी मदद की है। मगर हमारी असल परेशानी बाढ़ के बाद खेतीबारी के कामों में होती है। जिसके लिए बिहार सरकार नें ब्लॉक में दो बोरिंग का इंतजाम किया है और उसके चलानें के लिए ऑपरेटर की भी व्यवस्था है। मगर बोरिंग काम नही कर रही है। अगर यह बोरिंग काम करने लगे तो हमारा आधे से ज्यादा समस्‍या का समाधान हो जाय।

बिहार में ऐसी भी जाति बसती है, जहां उसको डोम के नाम से जाना जाता है। इनकों लोग अछूत मानते हैं। अपने यहां शादी के मौके पर उनको घर से दूर ही रखा जाता है। मगर ताज्जुब की बात यह है कि उनके द्वारा बनाये गये सामान को अपनी शादी व्याह के मौके पर खूब इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि हिन्दु धर्म में मौत के बाद भी कुछ रश्‍मों रिवाज अदा करनें में इनका अहम रोल होता है। अफसोस की बात यह है कि सरकार भी उनकी तरफ कम ध्यान दे पाती है।

ये कोई कश्‍मीर की वादी नही है बल्कि ये हालत है दरभंगा जिले के किरतपुर और घनश्‍यामपुर ब्लॉक की, जहां उसके निवासी दिन रात इसी तरह अपने आने जाने की समस्या हल करते हैं। पहले वे अपने घरों से अपनी सवारी लेकर आते हैं। जब नदी पार करना होता है तो नाव का सहारा लेना पड़ता है। नाव वालों की हर वक्त ड्यूटी लगी होती है और इन यात्रियों की मदद करते हैं। जो इन इलाके के निवासी है, वो इन्हे सालाना कुछ अनाज दे देते हैं। जब कि बाहर के लोंगों को एक तरफ से आने या जानें के लिए 10 रू देना पड़ता है। ये हाल तब है जब सख्‍त गर्मी का जमाना है। बरसात के बाद तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।

स्थानीय गैर सरकारी संस्था मिथिला ग्राम विकास परिषद के द्वारा दरभंगा के किरतपुर ब्लॉक के बोर नामक गांव में शिक्षा का सिलसिला जारी है। जहां सरकारी विभाग अपना काम पूरा नही कर पा रही है। ये संस्था अपना काम पूर्ण रूप से कर रही है। ये बाढ़ के वक्त भी लोगों के लिए समुदाय में खानें का इंतजाम करती है। उनकी जरूरत के अनुसार चींजे उन पीड़ितों तक पहुंचाया जाता है, जो कि एक सराहनीय कदम भी है। इस संस्था के संस्थापक नारायण जी चौधरी हैं। उन्हौनें अपनें कामों से चरखा टीम को काफी प्रभावित किया। चरखा टीम नें उनके साथ मिलकर एक कार्यशाला करनें का निर्णय लिया ताकि ये लोग अपनें मुद्वे और समस्याओं को कलम के जरिये जनमाध्यम तक पहुंचा सके।

भारत में मेवे में गिनती किया जाने वाला मखाना, जिसको ताल मखाना के नाम से भी जाना जाता है। ये दरभंगा के इलाके के लिए एक तरह से पहचान है। यहां के किसानों का मानना है कि सिर्फ इसकी खेती से ही हम अपनी जिंदगी गुजर बसर कर सकते है। मगर बाढ़ और गर्मी में पानी की कमी की वजह से इस नेमत से भी हाथ धोना पड़ जाता है। अगर सरकार थोड़ा सा ध्यान दे देती तो इससे हमारी आय की समस्या का समाधान काफी हद तक हो सकता है।

ये दरभंगा जिला का वह इलाका है, जहां कई नदियां एक साथ मिलती है और इसी के वजह से यहां हर साल बाढ़ आती है। इस बाढ़ से निजात दिलाने के लिए बिहार सरकार ने बांध बनवाये हैं। मगर यहां के निवासियों का कहना है कि इस बांध से हमें कोई फायदा नही है बल्कि ये संकट का कारण बन जाती है। हां इसके मरम्मत के वक्त हमें काम मिल जाता है। जिससे अपने बच्चों का पेट पाल लेते हैं। क्या करें घर के सारे पुरूष रोजी रोटी के तलाश में बाहर का रूख कर लेते है ताकि बाढ़ के दिनों में अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके।

बिहार के मशहूर उर्दू अखबार कॉमी तंज़ीम पटना के कार्यालय में अखबार के मुख्य संपादक एस एम अज़मल फरीद साहब से चरखा टीम दरभंगा और सीतामढ़ी की समस्याओं पर बात करते हुए - चरखा टीम ने बिहार की मीडिया से मुलाकात के दौरान उन समस्याओं को उजागर करने की कोशिश की ताकि उनकी समस्याओं को अधिकारियों तक मीडिया के माघ्यम से पहुंचाया जा सके। जिसके लिए वहां के मीडिया ने चरखा टीम से भरपूर मदद करने का वादा किया। चरखा ने बिहार के इन समस्याओं का समाधान ढ़ूंढ़ने और नवयुवको को बेजुवानों की जुवान बनाने की जरूरत महसूस की। इसी मकसद को हासिल करने के लिए चरखा ने लेखन शैली को बढ़ावा देने के लिए दरभंगा में एक कार्यशाला का आयोजन 14 जुलाई से 18 जुलाई 2009 को किया। ताकि सीतामढ़ी और दरभंगा के निवासी अपनी समस्याओं को अधिकारियों तक पहुंचा सके।

कार्यशाला के दौरान प्रतियोगियों को तीसरे दिन चरखा टीम की अगुवाई में क्षेत्र दौरा के लिए बाढ़ प्रभावित गांवों का दौरा कराया गया। जहां स्थानीय निवासियों ने खुलकर अपनी समस्याओं को सामने रखा। जिसको प्रतियोगियों ने आंकलन कर स्थानीय अखबार में प्रकाशित करवाया।

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इस यात्रा के दौरान दरभंगा से केवल 7 किलोमीटर दूर तारालाही ब्लॉक के धनैला गांव के लोगों ने मांग किया कि हमारे गांव वालों के लिए एक पुल का इंतजाम किया जाय क्योंकि पुल नही होने की वजह से हमलोग बाढ़ के पानी से परेशान रहते हैं। हम अपनी सरकार से केवल एक पुल और गांव से बाहर शहर की तरफ जाने के लिए एक सड़क की मांग करते हैं ताकि मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल सके। हमे बाढ़ के दौरान पैकेट देने से कहीं बेहतर है कि एक पुल की व्यवस्था कर दे।

यात्रा के वापसी पर कार्यशाला के दौरान चरखा टीम की अगुवाई में प्रतियोगियों ने दीवार अखबार बनाकर स्थानीय समस्या पर बातचीत की। इसका मकसद स्थानीय आवाज को अधिकारियों तक पहुंचाना है। जब कि दीवार अखबार के जरिये स्थानीय लोगों को सरकारी सहायता और उसकी जानकारी देना है।

कार्यशाला के दौरान स्थानीय प्रिंट मीडिया और इलेक्‍ट्रॅानिक मीडिया से प्रतियोगियों को रूबरू कराया गया। जिसमें प्रतियोगी और मीडिया के दरम्यान दूरी खत्म करने की कोशिश की गई। ये कोशिश काफी हद तक कामयाब रही क्योंकि स्थानीय मीडिया ने खास कर उर्दू अखबार ने प्रतियोगियों के द्वारा लिखे गये लेख को जगह भी दी। जिससे नये कलमकारों की हौसला अफजाई हुई।

कार्यशाला के आखिरी दिन मुख्य अतिथि के रूप में मशहूर पत्रकार और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्‍व विद्यालय के रीजनल डायरेक्टर श्री इमाम आजम साहब ने सिरकत की। उन्हौने चरखा द्वारा चलाये जा रहे इस कार्यशाला की तारीफ करते हुए कहा कि चरखा एक ऐसी संस्था है, जो समाज में पिछड़े लोगों की चिंता करती है। जिसके लिए चरखा के लोगों को मुबारकबाद देता हूं और साथ ही शुक्रिया अदा करता हूं कि चरखा ने दरभंगा को इस कार्यशाला के लिए चुना। कार्यक्रम के आखिर में मुख्य अतिथि के हाथों प्रतियोगियों को एक सर्टिफिकेट भी दिया गया।



नई व्यवस्था और नये समाज का निर्माण

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आज नये समाज का निर्माण करना बेशक एक नई चुनौती बन गई है। व्यवस्थाओं के अनुरूप सामाजिक परिवेश की कल्पना करना भी मुमकिन नही लगता है और प्राकृतिक आपदाओं के बाद तो हमारे समाज का स्वरूप ही बदल जाता है। तब हमारी कोशिश ऐसे समाज के निर्माण करने की होती है जहां मूलभूत सुविधाओं से लेकर उनके मौलिक अधिकार तक का हनन होता है। ऐसी सुविधाएं सरकार देती तो है परन्तु उनके सूचनाओं को संचारित नही करती है। यहीं से उनके जीवन की व्यथा शुरू होती है।

चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क ने बिहार के दरभंगा में एक कार्यशाला का आयोजन 14 जुलाई से 18 जुलाई 09 को बाढ़ पीड़ित क्षेत्र में आयोजित की। इस कार्यशाला में दरभंगा और सीतामढ़ी के लोगों ने भाग लिया। इस कार्यशाला का उद्वेश्‍य बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में संचार माध्यम को बढ़ावा देना था ताकि वे अपने मुद्वों को अखबार के जरिये जनमानस और सरकार तक पहुंचा सके।

बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के विशेषज्ञों में से एक श्री एम वी वर्मा से विचार विमर्श के दौरान वहां के जमीनी हकीकतों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उसके अनुसार जमीन और पानी वहां की सबसे बड़ी समस्या है। चरखा के कार्यों को सराहनीय बताते हुए कहा कि ऐसे कार्य उनके जीवन को बदलने में मददगार साबित होगी।
    नेपाल से सटा हुआ बसविट्टा इलाका सीतामढ़ी के सोनवर्षा ब्लॉक में स्थित है। इसकी सबसे बड़ी परेशानी बाढ़ के समय होती है। जब नेपाल से धीरे धीरे पानी छोड़ा जाता है। तराई क्षेत्र होने की वजह से कुछ दिनों तक पानी का जलजमाव भी रहता है।
    एम आर एम महाविद्यालय के छात्रों से मिलने पर सामाजिक परिवेश के बारे में बात की गई। मुद्वे और समस्याओं से जूझ रहे ग्रामीणों के लिए जमीनी मुद्वे क्या हो सकते हैं। इस बारे में चर्चा की गई और वहां के प्राध्यापक विद्यानाथ झा ने एक कार्यशाला का आयोजन अपने महाविद्यालय में करने का आग्रह भी किया।
    सीतामढ़ी में स्थित महिला समाख्या केन्द्र मुख्य रूप से महिला सशाक्तिकरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करती है। यह केन्द्र चरखा द्वारा आयोजित कार्यशाला में भाग लेकर उनमें और बेहतर करने की इच्छा जाहिर की।
    दरभंगा से 25 किलोमीटर दूर केवटी ब्लॉक में यह पैगम्बरपुर गांव है जहां एक छोटा सा सिलाई केन्द्र एक संस्था के सहयोग से चलाया जा रहा है। यह सिलाई केन्द्र गांव के ही निर्धन महिलाओं और युवतियों के लिए है जो आगे चलकर अपनी रोजी रोटी के लिए अपने पांव पर खुद खड़ी हो सके।
    पैगम्बरपुर गांव में ही कुछ युवतियों से बात करने के पश्‍चात अपने भाव व्यक्त किए। उनमें से सारी लड़कियां 8वीं पास है क्योंकि गरीबी और पैसा न होने की वजह से वे आगे की पढ़ाई नही कर पाती है। अखबार के महत्तव को समझने के बाद उन्हौने आगे पढ़ने की इच्छा जतायी।
    सीतामढ़ी के कुछ ग्रामीण लेखकों से मिलने के बाद सामाजिक परिप्रेक्ष्य में चर्चा की गई। सामाजिक मुद्वे और समस्याओं को समझने के बाद लेखन पर जोर दिया गया ताकि ग्रामीण समस्याओं को सभी लोग समझ सके।
    सीतामढ़ी से 15 किलोमीटर दूर रामपुर गंगोली में संजीव कुमार के द्वारा एक वॉल पेपर की शुरूआत की गई। इसके साथ साथ एक रूरल रिसोर्स सेन्टर स्थापित करने की मांग की गई जिससे कि हर तरह की जानकारी लोगों तक पहुंचाने का काम कर सके।
जापान से आये प्रतिनिधि ताकाहीरो नीरो ने सीतामढ़ी और दरभंगा का जायजा लिया। बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों में उनके जीवनशैली को देखने और परखने के बाद उन्हौन इनके जज्बों को सलाम किया।

कश्‍मीरी समाज में बढ़ता आत्मविश्‍वास

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आन्तरिक सुरक्षा हो या समाज की नई परिकल्पना दोनो ही परिप्रेक्ष्य में कश्‍मीर हमेशा से तत्परता दिखाई है। कश्‍मीरी समाज में ऐसी कल्पनाएं की जा सकती है जहां सीखने की चाहत दिखायी देती हो। समाज का दर्द न तो सरकार समझने की कोशिश करती है और न ही हमारे देश के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया दोनों ही ज्वलंत मुद्वों को प्रमुखता देते हैं। समाज में हो रहे बदलावों और समस्याओं को दरकिनार करने की कोशिश करते हैं।

बदलाव परि‍र्त्तन का नियम माना जाता है। बदलाव से ही जीवन के नये स्त्रोत का उजागर होता है। नई राह के लिये उन्हौने चरखा कार्यशाला में शामिल होने की इच्छा जाहिर की।

कुपवाड़ा से 12 किलोमीटर दूर कुनन गांव है जहां हेल्प फाउंडेशन की मदद से उनके रोजमर्रा के जीवन में बदलाव आया है। नूरजान से मुलाकात के दौरान उन्हौने अपने बारे में बताया। फाउंडेशन के द्वारा उन्हे एक गाय दी गई है जिसकी कमाई से उनके बच्चे अब स्कूल जाने लगे हैं।
    उसी गांव की एक बुजुर्ग महिला, जिनका नाम शाह माल है उन्हौन कश्‍मीरी भाषा में बात करने के दौरान बताया कि हमें औरो की तरह मदद नही मिल रही है और हम चाहते है कि आप मेरी बातों को वहां तक पहुंचा दे।
    हेल्प फांउडेशन के चाइल्ड प्रोटेक्शन कमिटि के सदस्य अब्दुल अहद दर से मिलने पर मैने अपने कार्यशाला में महिलाओं की भागीदारी करने को कहा तो उन्हौने महिलाओं के बारे में आपबीति बतायी। अन्तत: वे हमारे काम को सराहते हुए मदद करने को भी तैयार हुए।
    इस फाउंडेशन की मदद से वहां की काफी लड़कियों को फायदा हुआ है। ये सारी लड़कियां 10वीं करने के बाद सेब के बगीचे में पत्ते बिनने का काम करती थी। अब इनके सहयोग से ये सिलाई और कढ़ाई का काफी काम सीख चुकी है। ताकि वे आगे काम कर सके।
    इस सिलाई सेंटर में लगभग 20 लड़कियों को सिलाई का काम निशुल्‍क में सिखाया जाता है और उनसे किसी भी प्रकार का शुल्क नही लिया जाता है। तथा वे उनके लिए काम ढ़ूढ़ते हैं ताकि वे अपने काम में परिपक्व हो सके। वे मुख्य रूप से स्कूल के ड्रेस, फिरन और दूसरे अन्य वस्त्र भी सिलते हैं।
    हेल्प फांउडेशन के अध्यापकों की टीम जो अपने दो स्कूल चला रहे हैं और लोगों के लिए शिक्षा देते हैं और शिक्षा का प्रसार करते हैं। चरखा की टीम उनसे मिलने के बाद अपने सदस्यों को कार्यशाला में भाग लेने का आग्रह किया ताकि वे अपने क्षेत्र के बारे में लिख सके।
    कुपवाड़ा से 25 किलोमीटर दूर हंदवाड़ा एक छोटा सा शहर है। यह ट्रस्ट जम्मू एण्ड कश्‍मीर यतीम ट्रस्ट के द्वारा चलाया जा रहा है। इस यूनिट का नाम गुलिस्ताने बनात है। इस यूनिट की देखभाल जी ए कुमार करते हैं। इस यूनिट में 30 लड़कियां है जो यतीम हैं और इसकी तालीम विभिन्न स्कूलों में होती है। यह तालीम स्कूल के सहयोग से ही सम्भव हो सका है जो कोई भी शुल्क नही लेते हैं। कुमार बतातें हैं कि अभी सिर्फ 8वीं तक की शिक्षा हम देते हैं। आगे की पढ़ाई के लिए मेरे पास कोई साधन नही है।
    उन्हे देखने के बाद ऐसा लगा कि वे अपने घरों में ही रह रहे हैं और वहां एकदम खुशनुमा माहौल भी देखने को मिला। उनके लिए सारी सुख सुविधाओं का ख्याल रखा जाता है। उनके विचार भी औरों से मिलते जुलते थे। कुमार को वेलोग अब्बा कहकर बुलाते हैं।
17 नवम्बर से 19 नवम्बर 09 तक कुपवाड़ा शहर में कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें शरहदी इलाके के 30 लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में ऐसे तमाम मुद्वों को बताने की कोशिश की गई जो उनके जीवन को प्रभावित करता हो। कार्यशाला में दीवार अखबार के बारे में भी बताया गया।
रूरल रिसोर्स सेन्टर (हेल्प फांउडेशन का कार्यालय) खोलने का निर्णय लिया गया है। इस सेंटर का उपयोग ग्रामीणों को दिये जा रहे योजनाओं और कुछ महत्तवपूर्ण सूचनाओं के लिए होगा ताकि इसे यह सूचना प्राप्त करने के लिए सरकारी दफ्तर न जाना पड़े।
मुख्य शिक्षा अधिकारी से मिलने पर उन्हौने अपनी योजनाओं के बारे में बताया। बातचीत के दौरान उन्हौने हमारी पहल की सराहनीय करते हुए कहा कि ये सारी योजनाएं गांवों तक नहीं पहुंच पाते हैं। हम आपके सेंटर के जरिये ऐसी योजनाओं को गांवों तक जरूर पहुंचाने की कोशिश करेंगें।