पिछले साल बिहार में आयी भयावह बाढ़ से प्रभावित लोगों की हालत देखकर चरखा के अध्यक्ष शंकर घोष ने फैसला किया कि अपनी एक टीम बिहार भेजी जाय ताकि उनकी समस्या का मुनासिब समाधान तलाश किया जाय। चरखा टीम में शामिल उर्दू फीचर सेवा के संपादक मोहम्मद अनीस उर रहमान खान और अंग्रेजी की संपादक सुजाता राघवन ने बिहार के दो जिले सीतामढ़ी और दरभंगा का दौरा किया और अन्तत: फैसले के तौर पर वहां पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें प्रतियोगियों को पत्रकारिता प्रशिक्षण की व्यवस्था करायी गयी। |
![]() | सीतामढ़ी के राम नगरा गांव में भूतपूर्व मुखिया और गांव के लोगों से मिलने के बाद चरखा टीम से वहां के लोगों ने बताया कि पिछले वर्षों के मुकाबले इस साल बिहार में बाढ़ की समस्या पर सरकार ने हमारी अच्छी मदद की है। मगर हमारी असल परेशानी बाढ़ के बाद खेतीबारी के कामों में होती है। जिसके लिए बिहार सरकार नें ब्लॉक में दो बोरिंग का इंतजाम किया है और उसके चलानें के लिए ऑपरेटर की भी व्यवस्था है। मगर बोरिंग काम नही कर रही है। अगर यह बोरिंग काम करने लगे तो हमारा आधे से ज्यादा समस्या का समाधान हो जाय।
|
---|
बिहार में ऐसी भी जाति बसती है, जहां उसको डोम के नाम से जाना जाता है। इनकों लोग अछूत मानते हैं। अपने यहां शादी के मौके पर उनको घर से दूर ही रखा जाता है। मगर ताज्जुब की बात यह है कि उनके द्वारा बनाये गये सामान को अपनी शादी व्याह के मौके पर खूब इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि हिन्दु धर्म में मौत के बाद भी कुछ रश्मों रिवाज अदा करनें में इनका अहम रोल होता है। अफसोस की बात यह है कि सरकार भी उनकी तरफ कम ध्यान दे पाती है।
| ![]() |
---|
![]() | ये कोई कश्मीर की वादी नही है बल्कि ये हालत है दरभंगा जिले के किरतपुर और घनश्यामपुर ब्लॉक की, जहां उसके निवासी दिन रात इसी तरह अपने आने जाने की समस्या हल करते हैं। पहले वे अपने घरों से अपनी सवारी लेकर आते हैं। जब नदी पार करना होता है तो नाव का सहारा लेना पड़ता है। नाव वालों की हर वक्त ड्यूटी लगी होती है और इन यात्रियों की मदद करते हैं। जो इन इलाके के निवासी है, वो इन्हे सालाना कुछ अनाज दे देते हैं। जब कि बाहर के लोंगों को एक तरफ से आने या जानें के लिए 10 रू देना पड़ता है। ये हाल तब है जब सख्त गर्मी का जमाना है। बरसात के बाद तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। |
---|
स्थानीय गैर सरकारी संस्था मिथिला ग्राम विकास परिषद के द्वारा दरभंगा के किरतपुर ब्लॉक के बोर नामक गांव में शिक्षा का सिलसिला जारी है। जहां सरकारी विभाग अपना काम पूरा नही कर पा रही है। ये संस्था अपना काम पूर्ण रूप से कर रही है। ये बाढ़ के वक्त भी लोगों के लिए समुदाय में खानें का इंतजाम करती है। उनकी जरूरत के अनुसार चींजे उन पीड़ितों तक पहुंचाया जाता है, जो कि एक सराहनीय कदम भी है। इस संस्था के संस्थापक नारायण जी चौधरी हैं। उन्हौनें अपनें कामों से चरखा टीम को काफी प्रभावित किया। चरखा टीम नें उनके साथ मिलकर एक कार्यशाला करनें का निर्णय लिया ताकि ये लोग अपनें मुद्वे और समस्याओं को कलम के जरिये जनमाध्यम तक पहुंचा सके।
| ![]() |
---|
![]() | भारत में मेवे में गिनती किया जाने वाला मखाना, जिसको ताल मखाना के नाम से भी जाना जाता है। ये दरभंगा के इलाके के लिए एक तरह से पहचान है। यहां के किसानों का मानना है कि सिर्फ इसकी खेती से ही हम अपनी जिंदगी गुजर बसर कर सकते है। मगर बाढ़ और गर्मी में पानी की कमी की वजह से इस नेमत से भी हाथ धोना पड़ जाता है। अगर सरकार थोड़ा सा ध्यान दे देती तो इससे हमारी आय की समस्या का समाधान काफी हद तक हो सकता है।
|
---|
ये दरभंगा जिला का वह इलाका है, जहां कई नदियां एक साथ मिलती है और इसी के वजह से यहां हर साल बाढ़ आती है। इस बाढ़ से निजात दिलाने के लिए बिहार सरकार ने बांध बनवाये हैं। मगर यहां के निवासियों का कहना है कि इस बांध से हमें कोई फायदा नही है बल्कि ये संकट का कारण बन जाती है। हां इसके मरम्मत के वक्त हमें काम मिल जाता है। जिससे अपने बच्चों का पेट पाल लेते हैं। क्या करें घर के सारे पुरूष रोजी रोटी के तलाश में बाहर का रूख कर लेते है ताकि बाढ़ के दिनों में अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके।
| ![]() |
---|
![]() | बिहार के मशहूर उर्दू अखबार कॉमी तंज़ीम पटना के कार्यालय में अखबार के मुख्य संपादक एस एम अज़मल फरीद साहब से चरखा टीम दरभंगा और सीतामढ़ी की समस्याओं पर बात करते हुए - चरखा टीम ने बिहार की मीडिया से मुलाकात के दौरान उन समस्याओं को उजागर करने की कोशिश की ताकि उनकी समस्याओं को अधिकारियों तक मीडिया के माघ्यम से पहुंचाया जा सके। जिसके लिए वहां के मीडिया ने चरखा टीम से भरपूर मदद करने का वादा किया। चरखा ने बिहार के इन समस्याओं का समाधान ढ़ूंढ़ने और नवयुवको को बेजुवानों की जुवान बनाने की जरूरत महसूस की। इसी मकसद को हासिल करने के लिए चरखा ने लेखन शैली को बढ़ावा देने के लिए दरभंगा में एक कार्यशाला का आयोजन 14 जुलाई से 18 जुलाई 2009 को किया। ताकि सीतामढ़ी और दरभंगा के निवासी अपनी समस्याओं को अधिकारियों तक पहुंचा सके। |
---|
कार्यशाला के दौरान प्रतियोगियों को तीसरे दिन चरखा टीम की अगुवाई में क्षेत्र दौरा के लिए बाढ़ प्रभावित गांवों का दौरा कराया गया। जहां स्थानीय निवासियों ने खुलकर अपनी समस्याओं को सामने रखा। जिसको प्रतियोगियों ने आंकलन कर स्थानीय अखबार में प्रकाशित करवाया।
| <![]() |
---|
![]() | इस यात्रा के दौरान दरभंगा से केवल 7 किलोमीटर दूर तारालाही ब्लॉक के धनैला गांव के लोगों ने मांग किया कि हमारे गांव वालों के लिए एक पुल का इंतजाम किया जाय क्योंकि पुल नही होने की वजह से हमलोग बाढ़ के पानी से परेशान रहते हैं। हम अपनी सरकार से केवल एक पुल और गांव से बाहर शहर की तरफ जाने के लिए एक सड़क की मांग करते हैं ताकि मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल सके। हमे बाढ़ के दौरान पैकेट देने से कहीं बेहतर है कि एक पुल की व्यवस्था कर दे।
|
---|
यात्रा के वापसी पर कार्यशाला के दौरान चरखा टीम की अगुवाई में प्रतियोगियों ने दीवार अखबार बनाकर स्थानीय समस्या पर बातचीत की। इसका मकसद स्थानीय आवाज को अधिकारियों तक पहुंचाना है। जब कि दीवार अखबार के जरिये स्थानीय लोगों को सरकारी सहायता और उसकी जानकारी देना है। | ![]() |
![]() | कार्यशाला के दौरान स्थानीय प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॅानिक मीडिया से प्रतियोगियों को रूबरू कराया गया। जिसमें प्रतियोगी और मीडिया के दरम्यान दूरी खत्म करने की कोशिश की गई। ये कोशिश काफी हद तक कामयाब रही क्योंकि स्थानीय मीडिया ने खास कर उर्दू अखबार ने प्रतियोगियों के द्वारा लिखे गये लेख को जगह भी दी। जिससे नये कलमकारों की हौसला अफजाई हुई। |
कार्यशाला के आखिरी दिन मुख्य अतिथि के रूप में मशहूर पत्रकार और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्व विद्यालय के रीजनल डायरेक्टर श्री इमाम आजम साहब ने सिरकत की। उन्हौने चरखा द्वारा चलाये जा रहे इस कार्यशाला की तारीफ करते हुए कहा कि चरखा एक ऐसी संस्था है, जो समाज में पिछड़े लोगों की चिंता करती है। जिसके लिए चरखा के लोगों को मुबारकबाद देता हूं और साथ ही शुक्रिया अदा करता हूं कि चरखा ने दरभंगा को इस कार्यशाला के लिए चुना। कार्यक्रम के आखिर में मुख्य अतिथि के हाथों प्रतियोगियों को एक सर्टिफिकेट भी दिया गया। | ![]() |
No comments:
Post a Comment